Don’t cry over the past, it’s gone. Don’t stress about the future, it hasn’t arrived. Live in the present and make it beautiful.. बीते समय के लिए मत रोइए, वो चला गया, और भविष्य की चिंता करना छोड़ो क्यूंकि वो अभी आया ही नहीं है, वर्तमान में जियो , इसे सुन्दर बनाओ...
Friday, 9 December 2016
नोटबंदी का प्रभाव
पीएम मोदी के नोट बैन के फैसले को 30 दिन हो गए। नोटबंदी का फैसला कालेधन पर लगाम कसने के उद्देश्य से लिया गया था। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो देशहित में लिया गया यह फैसला जनता पर नकारत्मक प्रभाव ही डालता नजर आ रहा है। जैसा कि संसद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था।
भारत की कुल आधिकारिक जीडीपी 225 लाख करोड़ रुपये की है। एक अनुमान के मुताबिक इनमें से 75 लाख करोड़ रुपये काला धन और 150 लाख करोड़ रुपये सफेद धन है।
देश में कुल कालेधन का कोई आधिकारिक आंकड़ा नहीं है, लेकिन एक आकलन के मुताबिक मौजूद काले धन का 8 फीसदी हिस्सा नकदी के रूप में है। यानी 75 लाख करोड़ का 8 फीसदी हिस्सा करीब 6 लाख करोड़ रुपये नकदी रूप में है।
काला धन की रकम पर आर्थिक मामलों के जानकार भी अलग-अलग राय रखते हैं। उच्चतम न्यायालय में एक सरकारी वकील बता चुके हैं कि नोटबंदी के बाद उम्मीद है कि 5 लाख करोड़ रुपये अर्थव्यवस्था में वापस नहीं आएगा। इसके बाद से कई आर्थिक जानकार लगभग 6 लाख करोड़ रुपए के काले धन का अनुमान लगा रहे हैं।
देश की अर्थव्यवस्था में बड़े नोटों की कुल कीमत 14.5 लाख करोड़ रुपये थी। लेकिन नोटबंदी के बाद यह प्रचलन से बाहर हो गए। इस नाते, आर्थिक विशेषज्ञों के अनसार 14.5 लाख करोड़ रुपये में से 6 लाख करोड़ रुपये जो काला धन है, उसे हटा दिया जाय तो शेष कुल 8.5 लाख करोड़ रुपये सफेद धन है। सरकार ने उम्मीद की थी कि बड़ी नोटों के रूप में जो कालाधन है, वह बैंकों में जमा नहीं होंगे।
अगर बैंकों में 8.5 लाख करोड़ रुपये जमा होते हैं, तो सरकार दावा करेगी कि काला धन (6 लाख करोड़ रुपया) अर्थव्यवस्था से बाहर हो गया लेकिन अगर कुल 14. 5 लाख करोड़ रुपये बैंकों में वापस जमा हो जाते हैं, तो कहा जा सकता है कि सरकार इस मुद्दे पर फेल रही है।
आर्थिक जानकार मानते हैं कि अगर सरकारी दावे को मान भी लेते हैं तो इस नोटबंदी से सिर्फ 6 लाख करोड़ रुपये सरकारी खजाने में आएंगे।
इस मामले में सेन्टर फॉर मॉनिटरिंग द इंडियन इकॉनोमी (सीएमआईई) के मुताबिक 30 दिसंबर 2016 तक नोटबंदी अभियान के तहत होने वाला कुल खर्च 1.28 लाख करोड़ रुपए है, जो जीडीपी का 0.9 फीसदी होता है। इस रकम का बोझ देश के हर पुरुष, महिला और बच्चे पर करीब 1000 रुपये आता है।
सीएमआईई ने इसे कंजरवेटिव एस्टीमेट ही बताया है। इसका सही आकलन वित्त वर्ष खए अंत तक ही हो पाएगा। सीएमआईई के अनुसार वर्ष 2016-17 और 2017-18 की जीडीपी में गिरावट आएगी। हालांकि जीडीपी में कितनी गिरावट आएगी, इस पर भी अलग-अलग (0.5 फीसदी से लेकर 3 फीसदी तक) अनुमान लगाया जा रहा है।
रिजर्व बैंक ने 7 दिसंबर, 2016 को कहा था कि साल 2016-17 के दौरान जीडीपी में 0.5 फीसदी की गिरावट आ सकती है। वित्त वर्ष में तीन महीने शेष होने के चलते कहा जा सकता है कि अगले वित्त वर्ष में करीब 2 फीसदी गिरावट हो सकती है। संसद में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी यही कहा था।
अगले वित्त वर्ष की जीडीपी में दो फीसदी गिरावट का मतलब 3 लाख करोड़ रुपये का नुकसान। यानी अगले साल तक नोटबंदी से देश को कुल 4.3 लाख करोड़ (1.3 लाख करोड़ और 3 लाख करोड़) रुपये हो सकता है।
7 दिसंबर, 2016 को रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर के बयान के मुताबिक, बैंकों में अब तक 11.5 लाख करोड़ रुपये वापस आ चुके हैं। सिर्फ 3 लाख करोड़ रुपये बचे हैं और अभी 22 दिन बाकी हैं। ऐसे में अभी और पैसे बैंकों में जमा होगा।
अगर सभी पैसे बैंकों में वापस जमा हो जाते हैं जैसा कि केन्द्रीय राजस्व सचिव हंसमुख अधिया कह चुके हैं, तब देशवासियों पर बिना कारण ही नोटबंदी के फैसले से 4.3 लाख करोड़ रुपये का बोझ पडेगा और यह आम जनता को बोझ टैक्स के रूप में उठाना पडेगा।
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