यूँ तो हम सभी कभी न कभी अपनी जिदगी में कमर दर्द जिसे अपर-बैक पेन या लोअर बैक पेन (एल.बी.पी./यू .बी .पी.) जैसी समस्या से दो-चार होते हैं,कमर के हिस्से में आयी स्प्रेन यानी मोच प्रायः कमर दर्द (एल.बी.पी./यू.बी.पी. ) का कारण होती है Iअब आप यह भी जानना चाहेंगे कि स्प्रेन यानी मोच होता क्या है ? मोच यानि स्प्रेन लिगामेंट(तंतुओं ) में लगी चोट के कारण उत्पन्न होती है I कई बार इस स्प्रेन यानी मोच का कारण झटके से मुड़ना या झुकना अथवा किसी तरह से कमर की मांस पेशियों पर अचानक से दवाब बढ़ जाना होते हैं Iहमारे कमर या पेल्विक (कुल्हे )हिस्से की मांसपेशियों का मुख्य कार्य हमारी रीढ़ की हड्डी को संतुलन प्रदान करना होता है, इन्हीं की मदद से रीढ़ की हड्डी हमें खड़े होने के साथ-साथ झुकने,मुड़ने सहित अन्य मूवमेंट्स (गति )को संपादित करने में मददगार होती है Iकमर के हिस्से में पायी जानेवाली पेरा-स्पायनल मांसपेशियाँ हमें दौड़ने,तेजी से चलने,वजन उठाने आदि क्रियाकलापों में सहारा देती है, लेकिन अचानक उत्पन्न हुए दवाब या किसी बाह्य कारण के उत्पन्न चोट या मोच जैसी स्थिति में यह हमें बेसहारा भी कर डालती है I
आइये अब जानें के कमर दर्द कितने प्रकार के होते हैं ?
-कमर के निचले हिस्से में उत्पन्न लोअर बैक स्प्रेन या स्ट्रेन(एल .बी.पी/एस ) :यह हमारी दैनिक दिनचर्या जिस कारण बार-बार कमर में उत्पन्न होनेवाले दवाब उत्पन्न हो रहा हो, के कारण उत्पन्न हो जाती हैं,इसका कारण खेल के दौरान हुई दुर्घटना से लगी चोट या मोच भी हो सकती है Iकमर के हिस्से की मां पेशियों में उत्पन्न असहनीय दवाब के कारण मांसपेशियों के कोमल उतकों या लिगामेंट्स (तंतु ) टूट जाते हैं,इस कारण तीव्र दर्द उत्पन्न होता है I
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न अपर बैक स्प्रेन या स्ट्रेन (यू.बी.पी./एस ) :हमारी रीढ़ की हड्डी का उपरी हिस्सा जिसे अपर बैक या थोरेसिक स्पाईन कहते हैं यह कमर का सबसे कम मुड़ने वाला हिस्सा होता है Iरीढ़ की हड्डी का यह उपरी हिस्सा और इस हिस्से की मांसपेशियां हमारे शरीर को सीधा रखने में मददगार होती है Iइस हिस्से में दर्द का मूल कारण मांसपेशियों,लिगामेंट्स (तंतुओं ) एवं फाईब्रस उतकों में आयी चोट के कारण उत्पन्न होता है Iयूँ तो इस प्रकार के कमर दर्द का कारण भी दुर्घटना,चोट या अचानक से ट्विस्ट या मुड़ना हो सकता है लेकिन बिगड़ी जीवनशैली या गलत तरीके से कंप्यूटर,ड्राइविंग सीट या टेबल पर बैठने या गलत प्रकार से तकिया लगाकर सोने आदि से भी यह उत्पन्न हो सकता हैI
आईये अब इन कारणों को विदुवार रूप से जानें :
-कमर के निचले हिस्से में लोअर-बैक -स्प्रेन या स्ट्रेन के उत्पन्न होने के महत्वपूर्ण कारण :-
*खेलने या व्यायाम के दौरान कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों का अचानक से मुड या खींच जाना I
*कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों का अत्यधिक इस्तेमाल जैसे कमर पर लगातार प्रतिदिन भारी वजन उठाने से उत्पन्न दवाब I
*गलत पोस्चर यानि उठने बैठने के गलत तरीके ,भार उठाने या अन्य दैनिक क्रियाकलापों जिसके कारण मांसपेशियों पर अनावश्यक दवाब जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो I
*भारी वजन को अचानक उठाने या गलत तरीके से उठाने से I
*किसी प्रकार की दुर्घटना के कारण कमर के निचले हिस्से की संरचना पर लगी चोट के कारण I
*वजन बढ़ जाने से ,कमर के निचले हिस्से को अत्यधिक मोड़ने या कमर एवं पेट की मांसपेशियों के कमजोर होने के कारण I
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न अपर बेक स्प्रेन या स्ट्रेन के उत्पन्न होने के महत्वपूर्ण कारण :-
*गलत पोस्चर (उठने,बैठने और सोने के तरीके ) के कारण गर्दन एवं कन्धों पर उत्पन्न हुआ दवाब I
*लगातार दोहराया जानेवाला लिफ्टिंग,ट्विस्टिंग (मुड़ना ) एवं बेन्डिंग (झुकना ) अर्थात भार उठाना,शरीर को मोड़ना एवं घूम जाना जैसे मूवमेंट्स I
*किसी प्रकार के ट्रौमा यानि आघात के कारण रीढ़ की हड्डी का फ्रेक्चर (टूटना )या किसी प्रकार की चोट उत्पन्न हो जाने से I
-आईये अब कमर दर्द के लक्षणों को जानने का प्रयास करें :
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न स्प्रेन या स्ट्रेन के लक्षण :-
*कमर में तीव्र दर्द जो गति यानि मूवमेंट्स के साथ बढ़ जाना I
*लो-बैक -पेन (कमर के निचले हिस्से का दर्द ) जो कुल्हे की तरफ को जाता हो I
*मांसपेशियों में जकडन उत्पन्न होना I
*प्रभावित हिस्से में सूजन एवं दबाने पर दर्द उत्पन्न होना I
*कमर की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना I
*चलने,मुड़ने ,आगे झुकने,किनारे मुड़ने या सीधा खड़े होने में कठिनाई होना I
आईये अब रीढ़ के उपरी हिस्से की मांसपेशियों एवं रीढ़ के मध्य हिस्से की मांसपेशियों में आयी मोच या दवाब के कारण गर्दन के मूवमेंट्स में आयी परेशानी के लक्षण को जानें :-
*कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न होनेवाले दर्द के कारण गहरी सांस,खांसने ,थोरेसिक-स्पाईन वाले हिस्से को घुमाने या लगातार खड़े रहने से पीड़ा उत्पन्न होना I
*कमर के उपरी एवं गर्दन के हिस्से में उत्पन्न मांसपेशियों में जकडन उत्पन्न होना I
*रीढ़ के बीच वाले,गर्दन एवं कंधे के हिस्सों को मोड़ने में परेशानी का अनुभव I
-एल.बी .पी.(लो -बैक -पेन ) को डायग्नोज (पहचान ) करने के आधुनिक चिकित्सकीय तरीके :-
*कमर के निचले हिस्से में कम तीव्रता से उत्पन्न दर्द को पहचानने के लिए चिकित्सक प्रमुख रूप से रोगी की छोटी हिस्टरी (पुरानी रोग संबंधी कहानी ) पूछते हैं Iइसमें रोगी को पुरानी लगी चोट या उसकी जीवनशैली की गड़बड़ी आदि को जानना चाहते हैं I इसके लिए चिकित्सक रोगी का भौतिक परिक्षण जिनसे सूजन या जकडन को जाना जा सके I
*इमेजिंग स्टडीज :रीढ़ की हड्डी के फ्रेक्चर,ट्यूमर या संक्रमण उत्पन्न होने की संभावना के कारण दर्द के उत्पन्न होने को नकारना I*एम् .आर.आई.स्टडीज :इस अध्ययन से मेग्नेटिक फील्ड एवं रेडियो-फ्रीक्वेंसी के द्वारा रीढ़ की हड्डी की व्यापक एवं विस्तृत जानकारी मिलती है Iइस अध्ययन के द्वारा रीढ़ की हड्डी या लिगामेंट्स में आयी किसी भी प्रकार की चोट का पता लगाया जा सकता है I
-कमर के उपरी हिस्से (अपर-बैक -पेन ) को डायग्नोज करने के आधुनिक चिकित्सकीय तरीके :-
*कमर के उपरी हिस्से के दर्द यानी थोरेसिक स्प्रेन या स्ट्रेन को पहचानने के लिए भी चिकित्सक रोगी की छोटी पुरानी रोग से सम्बंधित कहानी पूछते हैं Iइसमें रोगी के स्पायनल एवं कंधे के हिस्से का सावधानी से परीक्षण करते हैं ताकि किसी भी प्रकार की संरचनागत विकृति ,सूजन एवं मूवमेंट्स (गति ) के बाधित होने एवं त्वचा में किसी प्रकार के परिवर्तन जैसे संक्रमण या ट्यूमर आदि की स्थितियों की संभावना को नकारना शामिल होता है Iइसके अलावा चिकित्सक न्यूरोलोजिकल परीक्षण भी करते हैं जिनमें तंत्रिकाओं का मोटर,सेंसरी एवं रिफ्लेक्स परीक्षण शामिल होता है Iइसमें चिकित्सक रोगी के हाथ को सिर के ऊपर,पीछे एवं 360 डिग्री के कोण तक घुमा कर अलग अलग परीक्षण करते हैं Iकमर के उपरी हिस्से के दर्द में भी चिकित्सक इमेजिंग स्टडीज एवं एम्.आर .आई. जांचों की मदद लेते हैं ताकि थोरेसिक-डिस्क-हर्नीयेशन,थोरेसिक कैंसर आदि को नकारा जा सके I
यदि कमर दर्द उत्पन्न हो रहा हो तो कौन से विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए :
* रोगी को आगे की तरफ झुकने से बचना चाहिए ऐसा खासकर हम तब करते हैं जब हमें कोई चीज उठानी होती है I
* रोगी को किसी भी भारी वस्तु को उठाने से बचना चाहिए I
* लम्बे समय तक एक ही स्थिति में बने रहना जैसे लगातार कंप्यूटर पर काम करने आदि कि स्थिति में एक छोटा सा ब्रेक (अल्प-विराम ) मददगार होता है,इसके अलावा वे लोग जो लगातार खड़े रहते हों,उन्हें भी बारी-बारी से एक पैर को किसी ऊँची जगह पर रखकर आराम लेना चाहिए I
*टीवी देखते समय या व्यायाम करते समय अथवा कुर्सी पर बैठी हुई या खडी हुई किसी भी स्थिति में कमर को सीधे आर्च की तरह घुमाने से बचना चाहिए I
*किसी भी भारी वस्तु को आगे से खींचने से बचना चाहिए जहां तक संभव हो आप ऐसी वस्तु को आगे की और धक्का देकर सरकायें न कि इसे खींचें I
*पैरों को क्रास कर बैठने की स्थिति से बचें,हमेशा बैठने की स्थिति ऐसी हो कि घुटने की स्थिति कुल्हे से ऊपर हो और एडीयाँ फुटरेस्ट पर हों I
*दोनों हाथों को किनारे की तरफ लटकाकर बैठने की स्थिति से भी बचना चाहिए,हमेशा हाथों को कुर्सी पर बैठने की स्थिति में आर्म-रेस्ट पर ही रखना चाहिए I
*आपका बिस्तर अत्यधिक मुलायाम या कठोर नहीं होना चाहिए ,जहां तक हो सके पतले बिस्तर का प्रयोग आपके लिए आरामदायक होता है I
ये तो रही कमर दर्द को जानने,पहचानने एवं समझने की सामान्य से लगती हुए महत्वपूर्ण बातें,लेकिन अब आप यह भी जानना चाहेंगे कि इसका निवारण क्या है ?
*बेड रेस्ट :-कमर के किसी भी हिस्से में उत्पन्न होने वाले दर्द में चिकित्सा का मकसद पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को कम करना ही पहला उद्देश्य होता है और इसे सबसे पहले आराम यानि बेड-रेस्ट देकर फ़ौरन पाया जा सकता है,कमर पर आनेवाले दवाब को आराम देकर आसानी से काबू में किया जा सकता है Iलगभग 48 घंटे का बेड-रेस्ट किसी भी प्रकार के चोट आदि के तुरंत बाद रोगी को फौरी तौर पर दिया जाना चाहिए ,इस प्रकार शरीर को आराम देकर कमर की मांसपेशियों में उत्पन्न जकडन (स्पाज्म ) को कम किया जा सकता है Iलेकिन कमर दर्द की प्रारम्भिक अवस्था में लम्बे समय तक दिया गया बेड-रेस्ट मांसपेशियों को कमजोर भी कर सकता है अतः प्रायः इसे 48 घंटे से अधिक नहीं दिया जाता है I
*गर्म या ठंडा तापक्रम उत्पन्न कर चिकित्सा देना :ठण्ड चिकित्सा में आईस-पैक्स (बर्फ के टुकड़ों ) को कमर के चोटिल हिस्से में प्रारम्भ के 48-72 घंटे तक क्रमशः 20-30 मिनट तक प्रयोग कराया जाता हैं,इससे चोटिल हिस्से में सूजन एवं पीड़ा कम हो जाती है Iइसी प्रकार चिकित्सक चोटिल होने के 48-72 घंटे के भीतर हीट-ट्रीटमेंट देते हैं,जिसमें गर्मी से दवाब उत्पन्न कर या पानी से की गयी सिकाई शामिल होती है I
आइये अब जानें के कमर दर्द कितने प्रकार के होते हैं ?
-कमर के निचले हिस्से में उत्पन्न लोअर बैक स्प्रेन या स्ट्रेन(एल .बी.पी/एस ) :यह हमारी दैनिक दिनचर्या जिस कारण बार-बार कमर में उत्पन्न होनेवाले दवाब उत्पन्न हो रहा हो, के कारण उत्पन्न हो जाती हैं,इसका कारण खेल के दौरान हुई दुर्घटना से लगी चोट या मोच भी हो सकती है Iकमर के हिस्से की मां पेशियों में उत्पन्न असहनीय दवाब के कारण मांसपेशियों के कोमल उतकों या लिगामेंट्स (तंतु ) टूट जाते हैं,इस कारण तीव्र दर्द उत्पन्न होता है I
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न अपर बैक स्प्रेन या स्ट्रेन (यू.बी.पी./एस ) :हमारी रीढ़ की हड्डी का उपरी हिस्सा जिसे अपर बैक या थोरेसिक स्पाईन कहते हैं यह कमर का सबसे कम मुड़ने वाला हिस्सा होता है Iरीढ़ की हड्डी का यह उपरी हिस्सा और इस हिस्से की मांसपेशियां हमारे शरीर को सीधा रखने में मददगार होती है Iइस हिस्से में दर्द का मूल कारण मांसपेशियों,लिगामेंट्स (तंतुओं ) एवं फाईब्रस उतकों में आयी चोट के कारण उत्पन्न होता है Iयूँ तो इस प्रकार के कमर दर्द का कारण भी दुर्घटना,चोट या अचानक से ट्विस्ट या मुड़ना हो सकता है लेकिन बिगड़ी जीवनशैली या गलत तरीके से कंप्यूटर,ड्राइविंग सीट या टेबल पर बैठने या गलत प्रकार से तकिया लगाकर सोने आदि से भी यह उत्पन्न हो सकता हैI
आईये अब इन कारणों को विदुवार रूप से जानें :
-कमर के निचले हिस्से में लोअर-बैक -स्प्रेन या स्ट्रेन के उत्पन्न होने के महत्वपूर्ण कारण :-
*खेलने या व्यायाम के दौरान कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों का अचानक से मुड या खींच जाना I
*कमर के निचले हिस्से की मांसपेशियों का अत्यधिक इस्तेमाल जैसे कमर पर लगातार प्रतिदिन भारी वजन उठाने से उत्पन्न दवाब I
*गलत पोस्चर यानि उठने बैठने के गलत तरीके ,भार उठाने या अन्य दैनिक क्रियाकलापों जिसके कारण मांसपेशियों पर अनावश्यक दवाब जैसी स्थिति उत्पन्न हो रही हो I
*भारी वजन को अचानक उठाने या गलत तरीके से उठाने से I
*किसी प्रकार की दुर्घटना के कारण कमर के निचले हिस्से की संरचना पर लगी चोट के कारण I
*वजन बढ़ जाने से ,कमर के निचले हिस्से को अत्यधिक मोड़ने या कमर एवं पेट की मांसपेशियों के कमजोर होने के कारण I
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न अपर बेक स्प्रेन या स्ट्रेन के उत्पन्न होने के महत्वपूर्ण कारण :-
*गलत पोस्चर (उठने,बैठने और सोने के तरीके ) के कारण गर्दन एवं कन्धों पर उत्पन्न हुआ दवाब I
*लगातार दोहराया जानेवाला लिफ्टिंग,ट्विस्टिंग (मुड़ना ) एवं बेन्डिंग (झुकना ) अर्थात भार उठाना,शरीर को मोड़ना एवं घूम जाना जैसे मूवमेंट्स I
*किसी प्रकार के ट्रौमा यानि आघात के कारण रीढ़ की हड्डी का फ्रेक्चर (टूटना )या किसी प्रकार की चोट उत्पन्न हो जाने से I
-आईये अब कमर दर्द के लक्षणों को जानने का प्रयास करें :
कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न स्प्रेन या स्ट्रेन के लक्षण :-
*कमर में तीव्र दर्द जो गति यानि मूवमेंट्स के साथ बढ़ जाना I
*लो-बैक -पेन (कमर के निचले हिस्से का दर्द ) जो कुल्हे की तरफ को जाता हो I
*मांसपेशियों में जकडन उत्पन्न होना I
*प्रभावित हिस्से में सूजन एवं दबाने पर दर्द उत्पन्न होना I
*कमर की मांसपेशियों का कमजोर हो जाना I
*चलने,मुड़ने ,आगे झुकने,किनारे मुड़ने या सीधा खड़े होने में कठिनाई होना I
आईये अब रीढ़ के उपरी हिस्से की मांसपेशियों एवं रीढ़ के मध्य हिस्से की मांसपेशियों में आयी मोच या दवाब के कारण गर्दन के मूवमेंट्स में आयी परेशानी के लक्षण को जानें :-
*कमर के उपरी हिस्से में उत्पन्न होनेवाले दर्द के कारण गहरी सांस,खांसने ,थोरेसिक-स्पाईन वाले हिस्से को घुमाने या लगातार खड़े रहने से पीड़ा उत्पन्न होना I
*कमर के उपरी एवं गर्दन के हिस्से में उत्पन्न मांसपेशियों में जकडन उत्पन्न होना I
*रीढ़ के बीच वाले,गर्दन एवं कंधे के हिस्सों को मोड़ने में परेशानी का अनुभव I
-एल.बी .पी.(लो -बैक -पेन ) को डायग्नोज (पहचान ) करने के आधुनिक चिकित्सकीय तरीके :-
*कमर के निचले हिस्से में कम तीव्रता से उत्पन्न दर्द को पहचानने के लिए चिकित्सक प्रमुख रूप से रोगी की छोटी हिस्टरी (पुरानी रोग संबंधी कहानी ) पूछते हैं Iइसमें रोगी को पुरानी लगी चोट या उसकी जीवनशैली की गड़बड़ी आदि को जानना चाहते हैं I इसके लिए चिकित्सक रोगी का भौतिक परिक्षण जिनसे सूजन या जकडन को जाना जा सके I
*इमेजिंग स्टडीज :रीढ़ की हड्डी के फ्रेक्चर,ट्यूमर या संक्रमण उत्पन्न होने की संभावना के कारण दर्द के उत्पन्न होने को नकारना I*एम् .आर.आई.स्टडीज :इस अध्ययन से मेग्नेटिक फील्ड एवं रेडियो-फ्रीक्वेंसी के द्वारा रीढ़ की हड्डी की व्यापक एवं विस्तृत जानकारी मिलती है Iइस अध्ययन के द्वारा रीढ़ की हड्डी या लिगामेंट्स में आयी किसी भी प्रकार की चोट का पता लगाया जा सकता है I
-कमर के उपरी हिस्से (अपर-बैक -पेन ) को डायग्नोज करने के आधुनिक चिकित्सकीय तरीके :-
*कमर के उपरी हिस्से के दर्द यानी थोरेसिक स्प्रेन या स्ट्रेन को पहचानने के लिए भी चिकित्सक रोगी की छोटी पुरानी रोग से सम्बंधित कहानी पूछते हैं Iइसमें रोगी के स्पायनल एवं कंधे के हिस्से का सावधानी से परीक्षण करते हैं ताकि किसी भी प्रकार की संरचनागत विकृति ,सूजन एवं मूवमेंट्स (गति ) के बाधित होने एवं त्वचा में किसी प्रकार के परिवर्तन जैसे संक्रमण या ट्यूमर आदि की स्थितियों की संभावना को नकारना शामिल होता है Iइसके अलावा चिकित्सक न्यूरोलोजिकल परीक्षण भी करते हैं जिनमें तंत्रिकाओं का मोटर,सेंसरी एवं रिफ्लेक्स परीक्षण शामिल होता है Iइसमें चिकित्सक रोगी के हाथ को सिर के ऊपर,पीछे एवं 360 डिग्री के कोण तक घुमा कर अलग अलग परीक्षण करते हैं Iकमर के उपरी हिस्से के दर्द में भी चिकित्सक इमेजिंग स्टडीज एवं एम्.आर .आई. जांचों की मदद लेते हैं ताकि थोरेसिक-डिस्क-हर्नीयेशन,थोरेसिक कैंसर आदि को नकारा जा सके I
यदि कमर दर्द उत्पन्न हो रहा हो तो कौन से विशेष सावधानियां बरतनी चाहिए :
* रोगी को आगे की तरफ झुकने से बचना चाहिए ऐसा खासकर हम तब करते हैं जब हमें कोई चीज उठानी होती है I
* रोगी को किसी भी भारी वस्तु को उठाने से बचना चाहिए I
* लम्बे समय तक एक ही स्थिति में बने रहना जैसे लगातार कंप्यूटर पर काम करने आदि कि स्थिति में एक छोटा सा ब्रेक (अल्प-विराम ) मददगार होता है,इसके अलावा वे लोग जो लगातार खड़े रहते हों,उन्हें भी बारी-बारी से एक पैर को किसी ऊँची जगह पर रखकर आराम लेना चाहिए I
*टीवी देखते समय या व्यायाम करते समय अथवा कुर्सी पर बैठी हुई या खडी हुई किसी भी स्थिति में कमर को सीधे आर्च की तरह घुमाने से बचना चाहिए I
*किसी भी भारी वस्तु को आगे से खींचने से बचना चाहिए जहां तक संभव हो आप ऐसी वस्तु को आगे की और धक्का देकर सरकायें न कि इसे खींचें I
*पैरों को क्रास कर बैठने की स्थिति से बचें,हमेशा बैठने की स्थिति ऐसी हो कि घुटने की स्थिति कुल्हे से ऊपर हो और एडीयाँ फुटरेस्ट पर हों I
*दोनों हाथों को किनारे की तरफ लटकाकर बैठने की स्थिति से भी बचना चाहिए,हमेशा हाथों को कुर्सी पर बैठने की स्थिति में आर्म-रेस्ट पर ही रखना चाहिए I
*आपका बिस्तर अत्यधिक मुलायाम या कठोर नहीं होना चाहिए ,जहां तक हो सके पतले बिस्तर का प्रयोग आपके लिए आरामदायक होता है I
ये तो रही कमर दर्द को जानने,पहचानने एवं समझने की सामान्य से लगती हुए महत्वपूर्ण बातें,लेकिन अब आप यह भी जानना चाहेंगे कि इसका निवारण क्या है ?
*बेड रेस्ट :-कमर के किसी भी हिस्से में उत्पन्न होने वाले दर्द में चिकित्सा का मकसद पीड़ित व्यक्ति की पीड़ा को कम करना ही पहला उद्देश्य होता है और इसे सबसे पहले आराम यानि बेड-रेस्ट देकर फ़ौरन पाया जा सकता है,कमर पर आनेवाले दवाब को आराम देकर आसानी से काबू में किया जा सकता है Iलगभग 48 घंटे का बेड-रेस्ट किसी भी प्रकार के चोट आदि के तुरंत बाद रोगी को फौरी तौर पर दिया जाना चाहिए ,इस प्रकार शरीर को आराम देकर कमर की मांसपेशियों में उत्पन्न जकडन (स्पाज्म ) को कम किया जा सकता है Iलेकिन कमर दर्द की प्रारम्भिक अवस्था में लम्बे समय तक दिया गया बेड-रेस्ट मांसपेशियों को कमजोर भी कर सकता है अतः प्रायः इसे 48 घंटे से अधिक नहीं दिया जाता है I
*गर्म या ठंडा तापक्रम उत्पन्न कर चिकित्सा देना :ठण्ड चिकित्सा में आईस-पैक्स (बर्फ के टुकड़ों ) को कमर के चोटिल हिस्से में प्रारम्भ के 48-72 घंटे तक क्रमशः 20-30 मिनट तक प्रयोग कराया जाता हैं,इससे चोटिल हिस्से में सूजन एवं पीड़ा कम हो जाती है Iइसी प्रकार चिकित्सक चोटिल होने के 48-72 घंटे के भीतर हीट-ट्रीटमेंट देते हैं,जिसमें गर्मी से दवाब उत्पन्न कर या पानी से की गयी सिकाई शामिल होती है I
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